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“फूलों की सेज नहीं है औरत का जीवन”
चम्पा ,चमेली ,फुलबा
नाम रख दिए ऐसे-
जिनसे महके तन -मन
पर फूलों की सेज नहीं है
औरत का जीवन |
सीता जैसी सती
बनी राम की भार्या
घूमी -भटकी बन-बन
चुरा ले गया रावण
अग्नि परीक्षा उसने भी दी
कौन सुन सका
उसके मन का क्रन्दन
फूलों की सेज नहीं है
औरत का जीवन |
०००एक साधारण औरत को
रोज़ उठाते रावण
पता नहीं चल पाता
कब जग जाए
किसके अन्दर का हैवान
डरा हुआ सहमा -सहमा सा
रहता हर दम मन
फूलो की सेज नहीं हैं
औरत का जीवन
०००सबको खुशियां बांटी
बन माँ-बेटी-पत्नी- बहन
आंख ना होने दी कभी नम
दूजों की खातिर झोंक दिये
सारे अरमान
नहीं मिला फिर भी समाज में
क्यों इक औरत को सम्मान ?
००० नहीं चाहिए सीता सा जीवन
नहीं चाहिए मनु की सीमा रेखा
अपने हाथो सजा लूगी
अपने सपनों का आंगन
मुझको बस बिचरण करने दो
मन के मुक्त गगन में
अपने पंखो से उड़ कर
अपनी इच्छाओं को लेकर
अपने बलबूते पर
मुझे सजाने दो
अपना जींवन|
नहीं चाहिए कोई युग पुरुष
कोई मनु ,कोई युधिष्ठर,
मर्यादा पुरषोत्तम राम
वार-वार का नहीं
चाहिए अब अपमान
नहीं चाहिए अब
सती का सम्मान
फूलो से महकते हुए नाम
मुझे बना रहने दो
इक साधारण सा इन्सान ।
“पुनीता सिंह”
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