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समझे आज़ादी की कीमत

general dibba
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(१५ अगस्त पर विशेष)
हम आज़ादी की ६६वीं सालगिरह मनाने जा रहें है। शहीदों ने अपनी जान की कुर्बानी देकर हमें गुलामी की ज़ंज़ीरों से मुक्ति दिलायी। उस आज़ादी को शहीदों की अमानत समझ कर संभालने की ज़रुरत है,पर आज बहुत अफसोस के साथ कहना पड्ता है कि हमारा देश भ्रष्ट नेताओं,उद्धोगपतिओं के अधीन होता चला जा रहा है।कभी सोने की चिडिया कहे जाने वाले देश में बिपन्नता का माहौल है,गरीब और गरीब तो रईस और रईस होते जा रहें है यानि असंतुलन काफी बढता जा रहा है।सरकार की गलत नीतियों के कारण कृषि-प्रधान देश में अरबों टन अनाज बर्बाद हो जाता है,तो दूसरी तरफ कालाहांडी उडीसा में भूख से लोंगों के मरने की खबरें भी आतीं हैं।सबसे शर्मनाक है देश की राज़धानी दिल्ली में गरीबी रेखा से नीचे लोगों ने भूख,ठ्न्ड या बीमारियों से मरने वालों की संख्या भी काफी हो गई है।
००००अपने ही देश में हम गुलामों की तरह रह रहे हैं,विदेशी हुकूमतों से हमे पैंसठ साल पहले शहीदों के प्रयास से आज़ादी तो मिल चुकी है,पर देश में जो माहौल है- उसमें अफरातफरी का नज़ारा है मंहगाई,खाना-पीना.मेडिकल,शिक्षा सभी का खर्च वहन कर पाना आम आदमी के लिये बहुत ही मुश्किल हो गया है,कदाचित इसीलिये अपराध का ग्राफ भी काफी बढ्ता जा रहा है।लोग अपना अधिकार तो हर हाल में माँगने निकल पडतें हैं.चाहें इसके लिये कानून को हाथ में ही क्यों ना लेना पडे-वो यातायात ज़ाम करके अपना अधिकार मांगतें हैं,वो पुलिस थानों पर पथराव कर अपना अधिकार मांगतें हैं। सार्वजनिक वाहनों को फूंक अपना रोष ज़तातें हैं।
०००ये कैसी आज़ादी है?कि हमें अपने ही देश में अपना हक और न्याय मांगने के लिये कानून हाथ में लेना पड्ता है।पुलिस को एक एफ.आई.आर.दर्ज़ कराने के लिये थानों और पुलिस स्टेशन के सामने धरना प्रदर्शन करना पड्ता है।पैसा और पहुँच के बल पर अपराधी या तो अग्रिम ज़मानत पर चन्द लमहों में ही जेल से बाहर आकर चौडा सीना कर घूमना शुरु कर देता है।मुसीबत तो ईमानदार और गरीब आम इंसान की है जिसे अपने ही आज़ाद मुल्क में गुलामी की ज़ंज़ीरों के बीच होने का अहसास रोज़ाना होता है।पुलिस,अदालतों और न्याय-पालिका से न्याय की गुहार लगाते-लगाते मुद्द्तें हो जातीं है।आत्महत्या और आत्मदाह जैसे नकारात्मक कदम उठाने के बाद प्रशासन की नींद खुलती है।
००००खतरे में है आधी-आबादी-
“दो साल की बच्ची के साथ बलात्कार की कोशिश,न्याय ना मिलने पर निराश पिता ने किया संसद भवन के सामने आत्म-दाह का प्रयास,बरेली में पति ने की पत्नी की हत्या-बेटा पैदा कर पाने में थी नाकामयाब,७२टुकडों में काटा पत्नी का ज़िस्म काले पालिथिन में भर कर रोज़ जाता था फेंकने,सुवर्णो ने सरेबाज़ार युवति के निर्वस्त्र कर घुमाया तमाशाबीन बनी रही पुलिस,मर्ज़ी से प्रेम विवाह करने पर सगे भाई और पिता ने की युवति की हत्या,११वीं बार माँ बनने जा रही है जबलपुर की अनीता बेटे की आस में,भ्रूण हत्या के लिये बना कानून फेल-चोरी चुपे ज़ारी है गर्भ में बेटे की पड्ताल,दिल्ली में हर तीसरी लड्की के साथ होता है यौन शोषण,ये कुछ ही खबरें हैं जो हमें रुबरु करातीं हैं कि आज़ाद भारत में आज़ भी महिलायें सुरक्षित नहीं हैं,पहले तो इनके दुनिया में आने के लिये रोका जाता है फिर कदम -कदम पर खतरों से उनके ज़ीवन को कांटों से सज़ाया जाता है कभी भाई,पिता, पति,बेटे,द्वारा तो कभी औरत ही औरत की राह में कांटे बोती है।यानि खतरा हर तरह से औरत को ही है कभी उसकी देह को लेकर तो कभी उसके पहनावे को लेकर,तो कभी पूर्वाग्रहों से भरा पुरुष-प्रधान समाज के नजरिये के कारण।ऎसे में आज़ादी की बातें करना बेमानी लगता है।
क्या हम भूलते जा रहें हैं आज़ादी के मायने?- हमने बात की साउथ दिल्ली में रह रही हाउस-मेकर ज्योति खुराना से कि आज़ का दिन उनके लिये क्या खास मायने रखता है-“आज़ादी का दिन है तो ज़ाहिर है काफी महत्त्वपूर्ण दिन है आज़ के दिन हमारा देश विदेशी ताकतों से पूरी तरह आज़ाद हो गया था जिसमें बहुत से शहीदों की कुर्बानी शामिल है।पर अफसोस के साथ कहना पड्ता है कि जिन लोगों ने आज़ाद भारत में आंखें खोली है उन्हें इस का मूल्य मालूम नहीं है।जिन नैतिक मूल्यों और संसकृति सभ्यता,ईमानदारी के लिये हम भारतीय जाने जाते थे वो बात अब कहीं नज़र नहीं आती।”
दिल्ली में पली बढी और अब अफसर बन चुकी उदिता के विचार है-“ये देश सभी का है इसमें अपनी ज़िन्दगी अपनी तरह से जीने का हक सभी को है”-ऎसे भाषण हमें लालकिले की प्राचीर से सुनने को मिलतें है १५ अगस्त के दिन।पर सच्चाई यही है इस देश में आज़ादी का जश्न मात्र एक औपचारिकता निभाने जैसा हो गया है।जिस देश में लालचौक पर झंडे फाडे जातें हों,जिस देश में बन्देमातरम गाने पर बबाल मचता हो,राष्ट्रिय-गान गाते समय कोई सम्मान में खडा भी नहीं हो सकता हो,राष्ट-भाषा में बात करने में शर्म हो,वहां आज़ादी की साल गिरह मनाना मात्र औपचारिकता निभाना ही कहा सकता है वो भाव बिल्कुल नदारत है जिसके लिये वीरों ने अपनी शहादत दी”
बातों से यह बात उभर कर सामने आती है अपने ही देश में अब लोग आज़ादी की सालगिरह को एक औपचारिक उत्सव की तरह निभातें हैं लोगों के दिलों में अपने ही नेताओं,शासनाधिसों को लेकर एक जबरदस्त नैराश्य का भाव है।आज़ाद हिन्दुस्तान का नागरिक होते हुये भी समस्यायें-मंहगाई.आंतकबाद,नारीशोषण,भ्रष्टाचार,जैसी बडी-बडी बेडियों से अपने आप को ज़कडा हुआ महसूस करतें हैं।उन्हें खुला आकाश तो आज़ादी के नाम पर मिला पर पंख फैला कर मुक्त गगन का सफर करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है।
फिर भी हम यही कहेंगें आज़ाद देश के नागरिक होने पर हमारा दिल गौरवान्वित महसूस करता है।हमारा सौभाग्य है कि हमने एक पूर्ण स्वतन्त्र देश में ही आखें खोलीं हैं।अपने बुज़ुर्गों से वीर शहीदों की कुर्बानियों और विदेशियों के शहीदों पर ज़ुल्म के किस्से सुन हमारे रोंगटें खडे हो जाते हैं,सिर उनकी शहादत में श्रध्दा से झुक जाता है,ज़िस्म का रोंआ-रोआ उनका ॠणी हैं।इसी ज़ज्बे के साथ हम आज़ादी की सालगिरह का महत्त्व खुद भी समझे और दूसरों को भी समझायें।
पुनीता सिंह
जे-८/२,एफ-३,कलिंगा अपार्टमेंन्ट्स
वेस्ट ज्योति नगर
दिल्ली -११००९४
फोन-२२८०३४८८

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