general dibba
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कानून का रक्षक भी बलात्कारियों से
अपना हिस्सा मांगता हैं।
डरी हुई,लुटी हुई लड़की को
इतना डराता हैं कि
बाप अपनी बेटी को
मुँह सिलने को कहता है।
ये कैसी आज़ादी
जिसमें
रक्षक ही
हवश के अंधों को
सुरक्षा कबच देकर
कामांध लड़कों की
भूल को बचाता है ।
ये कैसी आज़ादी
जिसमें-
उंगली उठती है तो सिर्फ औरतों पर
अंधेरों -उजालों में
जो गुनाह कर आतें हैं
नहा धो पावन हो जातें हैं
सुबह मंदिर में माथा टेक
रात के गुनाह उनके
सब मिट जातें हैं
ये कैसी आज़ादी –
जिसमें
एक लड़की ,एक बच्ची,
अपने ही घर में
महफूज़ नहीं है
महफूज़ नहीं है
उस देश में ये कहते हुए
शब्द जुवान से बाहर
आने से झिझकतें हैं
कैसे कहें की हम आज़ाद है ?
पुनीता सिहं
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